छुपी हुई सज़ाएं, ख़ामोश लम्हों में रहती हैं,हर बात की सदा, अब धड़कनों में बहती है।
कभी जो चाँद सा था, वो चेहरा क्यों बुझा सा है,रातें भी अब तो जैसे, तेरी रूह से डरती हैं।

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छुपी हुई सज़ाएं, ख़ामोश लम्हों में रहती हैं,हर बात की सदा, अब धड़कनों में बहती है।
कभी जो चाँद सा था, वो चेहरा क्यों बुझा सा है,रातें भी अब तो जैसे, तेरी रूह से डरती हैं।
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